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लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा / शंकराची आरती

शंकराची आरती
लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा ।
वीषें कंठ काळा त्रिनेत्रीं ज्वाळा ॥
लावण्यसुंदर मस्तकीं बाळा ।
तेथुनियां जल निर्मळ वाहे झुळझूळां ॥ १ ॥
जय देव जय देव जय श्रीशंकरा ।
आरती ओवाळूं तुज कर्पूरगौरा ॥ ध्रु० ॥
कर्पूरगौरा भोळा नयनीं विशाळा ।
अर्धांगीं पार्वती सुमनांच्या माळा ॥
विभुतीचें उधळण शितिकंठ नीळा ।
ऐसा शंकर शोभे उमावेल्हाळा ॥ जय देव० ॥ २ ॥
देवीं दैत्यीं सागरमंथन पैअं केलें ।
त्यामाजीं जें अवचित हळाहळ उठिलें ॥
तें त्वां असुरपणें प्राशन केलें ।
नीळकंठ नाम प्रसिद्ध झालें ॥ जय देव० ॥ ३ ॥
व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी ।
पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी ॥
शतकोटीचें बीज वाचे उच्चारी ।
रघुकुलतिलक रामदासा अंतरीं ॥ जय देव जय देव० ॥ ४ ॥

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