Skip to main content

विठुमाऊली तू माऊली जगाची

विठुमाऊली तू माऊली जगाची
माऊलीत मूर्ति विठ्ठलाची, विठ्ठला मायबापा ||
काय तुझी माया सांगु शिरीरंगा
संसाराचि पंढरी तू केली पांडुरंगा
डोळ्यांतून वाहे माय चंद्रभागा
अमृताची गोडी आज आलीया अभंगा
विठ्ठला पांडुरंगा
अभंगाला जोड टाळचिपळ्यांची
माऊलीत मूर्ति विठ्ठलाची, विठ्ठला मायबापा ||

लेकरांची सेवा केलीस तू आई
कसं पांग फेडू, कसं होऊ उतराई
तुझ्या उपकारा जगी तोड नाही
ओवाळीन जीव माझा सावळे विठाई
विठ्ठला मायबापा
जन्मभरी पूजा तुझ्या पाऊलांची
माऊलीत मूर्ति विठ्ठलाची, विठ्ठला मायबापा ||

Comments

Popular posts from this blog

आ गई है मैया गली गली में शोर,

आ गई है मैया गली गली में शोर, मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर... इधर घूमाए चाहे उधर घूमाए, जिस ओर चाहे मैया मुझको नचाए,  नाच रही मैं ऐसे जैसे बन में नाचे मोर,  मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर...   जिससे भी चाहे मैया पैच लड़ाए,  पास बुलाए चाहे दूर भगाएं,  कटु या वापस आऊ मेरा चले ना कोई जोर,  मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर...  रंग बिरंगी मां ने मुझको बनाया,  सुख और दुख का है मेल कराया,  मां के हाथ में डोरी वह ले ले जिसकी ओर,  मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर...  दूर गगन में मैं तो उड़ती ही जाऊं, डर लगता है कहीं कट नहीं जाऊं,  रास्ता नहीं सूझे चहू नीला घनघोर,  मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर...  आ गई है मैया गली गली में शोर,  मैं बनी पतंग मेरी मैया बन गई डोर...

आरती गणपतीची

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची कंठी झळके माळ मुक्ताफळाची जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ती जयदेव जयदेव रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा हिरेजडित मुकुट शोभतो बरा रुणझुणती नुपुरे चरणी घागरिया जयदेव जयदेव जयमंगल मूर्ती दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ती जयदेव जयदेव लंबोदर पितांबर फणिवर बंधना सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना दास रामाचा वाट पाहे सदना संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयमंगल मूर्ती दर्शनमात्रे मनकामना पूर्ती जयदेव जयदेव

आरती कीजै हनुमान लला की

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।। जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।। अनजानी पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई। दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए। लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई। लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे। लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे। पैठी पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े। बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे। सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे। कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई। लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई। जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै। आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की